Hindi story




प्यार की जीत


यश और रंजीता एक ही कालेज में पड़ते थे। लड़कीयां तो और भी बहुत थी लेकिन रंजीता सबसे अलग थी। उसको देखने की चाहत में यश ने बहुत बार कलास मिस की थी। पास होने या ना होने की फिक्र उसको ना थी। आखिर अपने पिता जी का बिज़नैस ही तो संभालना था उसको, कौनसा पास हो कर किसी की नौकरी करनी थी। बहुत बार बात करनी चाही यश ने उसके साथ, लेकिन रंजीता ने कभी ध्यान नहीं दिया था उसकी तरफ़। एक दिन हिम्मत करके यश ने उसको बुला ही लिया।
उस दिन ज्यादा बात तो नहीं हुई पर उसको भी यश अच्छा लगा।
धीरे धीरे बातें होने लगी। फिर बातें मुलाकातों में बदलने लगी। सालाना परीक्षा हुई, रंजीता के अच्छे अंक आए पर यश फेल हो गया। रंजीता ने दूसरे कालेज में दाखिला ले लिया और यश अपने पिता के साथ काम में लग गया। लेकिन उनकी मुलाकातें कम न हुई। यश काम में से समय निकाल कर रंजीता के कालेज आने जाने के समय उसे जरुर मिलता। फ़ोन पर भी बातें होती रहती। समय निकलता गया और फिर रंजीता की ग्रैजूऐशन पूरी होने वाली हो गई।
यश ने बिज़नैस अच्छी तरह संभाल लिया था। उसके लिए रिश्ते भी आने लगे थे। लेकिन यश ने घरवालों को साफ़ कह दिया कि वो शादी करेगा तो सिर्फ रंजीता से। दूसरी जात की लड़की का सुन कर मां ने तो साफ़ मना कर दिया। पिता जी ने भी खुल कर उसका समर्थन नहीं किया। इतना जरूर कह दिया कि अगर लड़की और परिवार अच्छा हुआ तो वे सोचेंगे। यश अपनी बात पे अड़ा हुआ था।
उधर रंजीता ने अपने परिवार को बताया तो वे भी दूसरी जात के लड़के के लिए नहीं माने। वो उस पर अपनी जात के किसी लड़के से शादी के लिए दबाव बनाने लगे। रंजीता ने भी साफ़ कह दिया कि वो किसी और से शादी नहीं करेगी। लड़के उसे देखने आते तो वो उनको मना कर देती। रंजीता के पिता जी ने विदेश में रहते उसके मामा जी को ये सब बताया तो उन्होने एक तरकीब सुझाई।
रंजीता के पिता जी ने उसके सामने दो विकलप रख दिए कि या तो उसको किसी और लड़के से शादी करनी होगी या फिर अपने मामा जी के पास विदेश जाना होगा। रंजीता ये सुनकर असमंजस में पड़ गई।
उसने यश से बात की तो यश भी एक बार चक्कर में पड़ गया। रंजीता के मामा जी का प्लान बहुत अच्छा था कि वो यश से दूर रहेगी तो अपने आप उसको भूल जाएगी।
रंजीता के पिता किसी और तरह मानने को तैयार नहीं थे तो मजबूरन उसको विदेश जाने के लिए मानना पड़ा। वो चली तो गई पर उसका दिल यहीं था यश के पास। दोनो फ़ोन पर बातें करते रहते। यश के पिता जी और मां ने भी सोचा कि चलो अब तो यश कहीं और शादी के लिए मानेगा ही। पर ये उनकी गलतफहमी थी। यश शादी के लिए ना माना।
रंजीता को गए काफी समय हो गया था। अब उसके पास पक्की नौकरी थी और इतनी रकम भी कि वो अपने आप इंडिया आ सके। उसने किसी को बताए बिना इंडिया की टिकट बुक करवा दी। यश को जब उसने ये बताया तो यश बहुत खुश हुआ। यश ने कोर्ट में जाकर शादी के लिए आवेदन कर दिया। वकील से कह कर उसने शादी की तारीख़ भी रंजीता के इंडिया आने वाले दिन की ले ली।
यश ने इस बार अपने घरवालों को मनाने की कोई कोशिश नहीं की। उसने अपने दोस्तों के साथ घूमने का प्लान बनाया और रंजीता के आने से तीन दिन पहले घरवालों को एक हफते का प्रोग्राम बता कर निकल गया।
दोस्तों के साथ दो दिन बिता कर यश अकेला ही एयरपोर्ट के लिए निकल गया। दोस्तों को उसने घर पे कुछ भी बताने के लिए मना कर दिया।
रंजीता की फलाईट सुबह जलदी आनी थी इसलिये यश जलदी ही एयरपोर्ट पहुंच गया। फलाईट उतरी और रंजीता बाहर आई तो यश की खुशी का ठिकाना ना रहा। दोनो वहां से सीधे कोर्ट के लिए निकल पड़े। अपने प्यार को पा लेने की ख़ुशी थी तो परिवारों के शामिल ना होने का ग़म भी। कोर्ट में दोनो रजिस्टरार के दफतर पहुंचे तो दफतर के बाहर यश के पिता जी खड़े थे। उनके साथ ही रंजीता के पिता जी भी खड़े थे। उनको देख के दोनो घबरा गए।
'पापा आप यहां? आपको कैसे..... 'यश ने सवाल किया ।
'रंजीता के पिता जी के पास उसके मामा जी का फ़ोन आया कि रंजीता बिना बताए घर से चली गई और उसके क्रेडिट कार्ड की डिटेल से उन्हें पता चला कि उसने इंडिया के लिए टिकट बुक करवाई है। ये मेरे पास आये तो तू भी गायब था। तेरे दोस्तों से पूछा तो वो कुछ बता नहीं पाए। मैं समझ गया तुम लोग कहां होंगे।'
'हम कया करते पापा'
'करना कया है अंदर चलो और शादी करो।' रंजीता के पिता जी ने कहा।
'सच पापा' रंजीता ने कहा।
'हां बेटा तुम्हारा प्यार जीत गया ।'

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