Hindi story

Genretion gap 






नई पीढी और पुरानी पीढी के बीच विचारों के मतभेद की समस्या काफी पुरानी हैं। नई पीढी सिफ॔ चलना चाँहती हैं। और इसके लिये वो गिरने को भी तैयार हैं। और पुरानी पीढी चाँहती हैं कि बच्चे बिना गिरे ही उनके अनुभव से चलना सीख जायें।
दोनों ही पीढी अपनी-अपनी जगह सही हैं पर दोनो पीढी को सिफ॔ एक एक सत्य को स्वीकार करना होगा।
पुरानी पीढी‚ इस चीज को समझे की अनुभव अपने होतें हैं किसी से उधार नहीं लिये जाते हैं। और बिना गिरे हम चलना तो सीख सकते हैं पर सम्भलना नहीं। हम गिरेगें तभी तो उठने का हुनर सिखेंगें।
वहीं दूसरी और यह भी उतना ही सत्य हैं कि किसी सीढी को हम कितना ही मॅाडन कर लें ‚ उसे इलेक्ट्रानिक बना ले‚ पर ऊपर तक पहुँचने के लिये शुरूआत तो पहली सीढी से ही करनी होगी और ये पहले सीढी ही हमारे बड़ो का वो अनुभव हैं जो उन्होने उस सीढी में चढने के लिये न जाने कितने बार गिर कर कमाया हैं।
बस ये एक एक विचार दोनों पीढी के बीच के मतभेदों कों समाप्त कर सकता हैं।
याद हैं वो ॰॰॰॰॰॰
बचपन के दिन जब पापा सार्इकल चलाना सिखाया करतें थें। और पीछे से सीट को पकड़ लिया करते थे कि हम गिर न जायें। औंर हम चाँहतें कि हम खुद से चलाये पीछे मुड़ मुड़ कर पापा छोड़ो न प्लीस कहते थें। औंर जिस दिन पापा सीट छोड़ देते थे उस दिन तो जैसे जीत हाँसिल हो गई हो सारे दोस्तो को बतायेंगें कि आज तो पापा के बिने पकड़े सार्इकल चालाया।
और पता हैं उस दिन सबसे ज्यादा खुशी पापा को हुई थी कि अब हमें सहारे की जरूरत नहीं।
अथार्त हमारे बड़े सिफ॔ तब तक ही हमें समझातें हैं जब तक की हम खुद से चलने लायक न हो जायें।
इसीलये अपने बड़ो को समझें। और इस जनरेशन गेप को हमेशा के लिये भर दें।
मैं आप लोगो के साथ मेरा एक सत्य अनुभव कहानी स्वरूप में बाँट रही हुँ जिससे शायद हम आसानी से समझ सके।
एक दिन अशोक नाम का युवा अपने माता-पिता को अपने साथ अपने office की एक पार्टी में ले गया। पार्टी में बहुत बड़े-बड़े लोग लाये थे और सभी अपनी अपनी फैमिली के साथ आये थे।
पार्टी चल रही थी। और अशोक के माता-पिता कोने में खड़े होकर अपने बेटे की खुशी को देख रहें थे। अब समय था डिनर का लगभग सभी लोगो ने खाना प्रारम्भ कर दिया था। तभी
पापा चलिये हम लोग भी खाना खा लेते हैं - अशोक ने कहा
हाँ बेटा- पिता ने कहा
पापा यहाँ आयियें आराम से बैठ कर खाते हैं- अशोक ने कहा
पर ये क्या अशोक का खाना खत्म होने को था और मम्मी पापा अभी तक इधर उधर देंख ही रहें हैं।
इधर उधर क्या देख रहें हों खाना शुरू करो न - अशोक
पिता सोच में कैसे खाते हैं इस चाकु-छूरी से खाना ! ! चलो कोशिश करता हुँ ‚ कि चम्मक नीचे गिर गयी।
जब आता नहीं हैं तो क्यों डेको मार रहें हो चुपचाप हाथ से खा लो - अशोक
पिता ने आँखें झुकाते हुए हाथ से खाना शुरू किया ‚वहाँ मौजूद कुछ लोग पिता को देखने लगे ।
पिता तो शर्म से आँखें झुका चुके थे पर अशोक को अच्छा न लगा।
पापा रहने दो सब देंख रहें हैं अपन रास्ते से कुछ खा लेंगें चलो यहाँ से - अशोक
क्या अशोक ने सही किया !
अगर उसकी जगह आप होते तो क्या करते !
1 मम्मी पापा को पहले से ही चाकु छुरी से खाना सिखा कर ले जातें।
2 उन्हें हाथों से खाने देते बिना शर्मिदा हुए।
3 पिता की छुरी गिर जाने पर उन्हे उठा कर देते और बताते कैसे खाना हैं।
4 उन्हें वहाँ खाने मे शर्म आ रही थी तो वहाँ खाना खाने को ही न कहते।
5 तुम्हे पता था कि उन्हें चाकु छुरी से खाते नहीं बनेगा तो तुम उनकी प्लेट में ऐसी चीजे रखते जिसे खाने में चाकु छुरी का इस्तमाल न होता हों।
6 या कुछ और ।
सोचिये !!
! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! ! !
ज्यादातर लोगो के मन में सही उत्तर होगा 2 कि “उन्हें हाथों से खाने देते बिना शर्मिदा हुए।”
पर ऐसा करने से क्या पिता कि झुखी नजर उठ पाती।
एक पिता अपनी 60 साल की आदत को छोड़कर अपने बेटे के लिये चाकु-छूरी से खाने को तैयार हो गया पर एक बेंटे ने क्या किया ।
पिता ने तो एक कदम आगे बढाया बस अशोक न बढा सका।
“काश”
“काश” की उस दिन अशोक अपनी चाकु छुरी छोड़ कर पिता का साथ देकर हाथ से खाना खा लेता !!!!
तो ! ! ! ! ! ! !
तो पिता की शर्म दूर हो जाती और वो सर उठा कर अपने बेटे के साथ खुशी - खुशी खाना खाते ।
और शायद अशोक कुछ और लोगो के लिये भी मिसाल बन जाता।
सोचिए!
अशोक एक छोटा सा कदम बढा कर इस जनरेशन गेप को समाप्त कर सकता था ।
ऐसा कर्इ बार हमारे साथ भी होता हैं कर्इ बार हम अपने माता-पिता का साथ इस दिखावटी दुनिया के कारण नहीं दे पाते हैं कि “लोग क्या कहेंगें ” तो दोस्तो याद रखो कि आपको माता - पिता ने पाला हैं लोगों ने नहीं ।
जो लोग आपको माता-पिता का साथ देने से रोके वो लोग कौई काम के नहीं ।
“दो पीढी के विचार जब असमान होते हैं तो उसे जनरेशन गेप कहा जाता हैं।”
ठीक उसी तरह अगर दो पीढी के विचार मिल जाये तो इस जनरेशन गेप को भरा जा सकता हैं।
इसीलिये हमेशा उस एक कदम को बढाने में संकोच न करे।
अशोक ने जो गलती की वो आप न करें। अगर हमारे बदलने से काम चलता हैं तो हम बदले माता-पिता से बदलने की उम्मीद न करे। कम से कम अब तो उन्हें अपनी जिन्दगी जी लेने दें।


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