अपूर्णता

अपूर्णता
कृति बच्चे को गोद में लिए सोच रही थी, कितनी खुशकिस्मत है वह, उम्मीद ही नहीं थी या यों कहें, सपने में भी सोच नहीं सकती थी कि एक दिन बच्चा उसकी गोद में खेलेगा, उसे माँ कहेगा। यह सुख भी किस्मत में लिखा होगा। जुड़ जायेगा ये अनकहा रिश्ता। ..... अनकहा? हाँ अनकहा ही तो था। अभी तक बच्चे ने माँ कहा भी न था और उसके कानो में माँ शब्द गूंजने लगा था। प्रभु तेरा.... नहीं नहीं ……. यह सब तो उसकी माँ की हिम्मत और ममता का कमाल है। हाँ, भगवान् ने उसे पूरा भी नहीं बनाया। पता नहीं क्यों ….
राज और शान्ति एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। घर वालों की मर्जी से शादी भी हो गई। फिर राज की नौकरी राजगढ़ में लग गई। ठेठ गाँव था। ठीक से अस्पताल भी नहीं थे। परिवार से दूर जाकर वहां बस गए। कुछ दिनों बाद पता चला, शान्ति माँ बनने वाली है। दोनों बहुत खुश थे। परिवार के लोग भी मिलने आये। सभी की ख़ुशी का ठिकाना न था। शांति के पीहर वाले और ससुराल वाले दोनों ने बड़ा जोर दिया कि वहां उनके पास रहने को आ जाये, पर शान्ति न मानी, उसे राज के साथ रह कर ही बच्चे को जन्म देना था और राज नौकरी छोड़ नहीं सकता था। फिर तय हुआ कि शान्ति यही गाँव में बच्चे को जन्म देगी। दाई से बातचीत हो गई। समय आया, शान्ति ने बच्चे को जन्म दिया। दाई ने जैसे ही बच्चे को गोद में लिया, चौंक गई! शांति की उत्सुक निगाहें देख कर, कुछ देर तक दाई की समझ में न आया कि क्या कहे. कैसे कहे, फिर अपने आपको संयत करके कहा,
बीबीजी … ये बच्चा तो …. न लड़का है न ही लड़की!
शांति एक पल के लिए सुन्न हो गई, फिर होश आया तो दाई से पूछा..... अब क्या होगा? दाई बोली, इसके जात के लोग आयेंगे और इसे ले जायेंगे। सुन कर कलेजा मुँह को आ गया, क्या मेरा बच्चा ऐसी जिंदगी जियेगा, नहीं … एक पल में दिमाग तेजी से दौड़ने लगा। कहते हैं न, माँ अपने बच्चे की सलामती के लिए बड़े से बड़े तूफ़ान से भी टकरा जाती है। उसने दाई को मुह बंद रखने को कहा और भारी कीमत देने का वादा किया। दाई अच्छी थी, उसने कहा, ठीक है पर बीबी जी कैसे छुपा पाओगी इसे दुनिया की नजरों से … शान्ति ने कहा, तुम सब हो न मेरे साथ। शान्ति ने बच्चे को कभी बिना कपड़ो के न रखा। किसी के सामने कपडे न बदले।उसे स्कूल भी नहीं भेजा। घर में ही उसकी शिक्षा अपनी नजरों के सामने कराने लगी। उसे भगवान् की कृति मान उसका नाम कृति रख दिया। धीरे धीरे वह बड़ी होने लगी। जैसे जैसे बड़ी होती गई, उसे खुद की कमियाँ स्वत: समझ में आने लगी, उसे यह अहसास होने लगा था कि वह औरों जैसी नहीं है। समझ गई थी कि भगवान् के सृजन में कहीं कोई चूक हो गई। कई बार शान्ति से पूछती थी, माँ भगवान् ने मुझे औरों जैसा क्यों नहीं बनाया। शान्ति क्या कहती, फिर भी अपने दिल पर पत्थर रख कर उसे समझाती, देखो, ऐसा नहीं बनाया तो क्या हुआ, पढ़ाई में तुम कितनी होशियार हो, घर के कामो में शुरू से ही चपल हो, छोटी सी उम्र में भी सब कुछ सीख गई हो, सभी का दिल कैसे झट से जीत लेती हो, क्या औरों में ये सब गुण है। छोटी कृति यह सब सुनकर खुश हो जाती और पहले से भी और अच्छे से नई कारीगरी की चीजे बनाना शुरू कर देती। इसी तरह कई साल बीत गए। एक दिन कृति घर के आँगन में बैठी कढ़ाई कर रही थी, अचानक उसने देखा, एक लड़का उसकी तरफ आ रहा था। वह डर के मारे अंदर की ओर भागने वाली थी, इतने में वह पास आया और पूछने लगा, राज साहब का घर यही है क्या? कृति ने हाँ में गर्दन हिला दी तो उसने एक चिट्ठी निकाल कर दी और कहा मैं यहाँ का नया डाकिया हूँ। कृति चिठ्ठी ले कर चुपचाप भीतर चली गई। उसे बचपन से माँ ने सिखाया था कि किसी भी अनजान के साथ बात नहीं करना। फिर से दुसरे दिन एक और चिठ्ठी लेकर आया। अब वह रोज किसी न किसी बहाने से उधर से गुजर ही जाता था और एक निगाह कृति पर डाल कर चला जाता था। कृति भी उस एक निगाह के लिए घंटों इंतज़ार करती थी। दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता पनपने लगा था। इधर राज और शांति को कृति के विवाह की चिंता सताने लगी, अब क्या करें? कैसे करें? अब तक तो जैसे तैसे भगवान् ने लाज रख ली। शान्ति और राज ने तय किया, किसी गरीब लड़के की तलाश की जाये, जो घर जंवाई बनने को तैयार हो जाए और कृति जैसी से विवाह करने को, एक ऐसे लड़के की खोज शुरू हुई। परंतु जब तक भरोसा न हो तब तक किसी से अपने मन की बात कह भी तो नहीं सकते थे। इसी तरह कई दिन बीत गए। उधर एक दिन उस लड़के ने कृति से एक गिलास पानी के बहाने बात कर ली और कृति का भी डर थोड़ा थोड़ा कम हो गया था। अब प्रायः दोनों बात करने लगे थे। साथ में थोड़ा हंसी मजाक भी कर लेते थे। कृति के सीने में भी भावनाएं हिलोरे लेने लगी थी।, वह जानती थी अपनी कमियों को, पर दिल तो आखिर दिल है, धड़कता तो हर किसी में है। एक दिन जब दोनों बात कर रहे थे तो शांति के मन में विचार कौंधा, क्यों न इसी लड़के से बात की जाए। उसका झुकाव भी कृति के प्रति साफ़ नजर आ रहा था। शांति ने उससे बात शुरू करने के लिए कहा, तुम्हारा नाम राजेश है ना। उसने कहा, हाँ, मैं इस गाँव का डाकिया हूँ। तब शांति ने उसे कृति के बारे में सब कुछ बता दिया। जब शांति से राजेश को कृति की सच्चाई पता चली ,पहले तो उसे विशवास ही नहीं हुआ। कभी भी बातचीत में कुछ भी अटपटा नहीं लगा था। ऐसा कैसे हो सकता है? कई दिन तक वह अपने आप को संयत न कर पाया। उस तरफ से गुजरना ही छोड़ दिया। परंतु वो अनकहा रिश्ता उसे अपनी ओर खींच रहा था। उसे समझ में नहीं आ रहा था, ये कैसी उलझन में फंस गया है। उसे अपनी बहन की शादी करनी थी और साथ ही साथ बीमार माँ का इलाज भी, जिसके लिए ढेर सारे पैसों की जरूरत थी,ऊपर से बाप भी लाखों का कर्ज छोड़ गया था, जिसे उसे ही चुकाना था। शांति ने उसे पैसों का लालच भी दिया था जो उसकी बहुत बड़ी जरूरत थी, फिर भी इस तरह का रिश्ता? बहुत सोच विचार करके, उसने हिम्मत करके शान्ति से कहा, परंतु मैं ही क्यों? मेरी जिंदगी तो खराब हो जाएगी, तब शान्ति ने कहा, तुम दूसरी शादी कर सकते हो, पर मेरी बेटी को हमेशा खुश रखना और इस राज को अपने सीने में दबा कर रखना, तुम्हारी दूसरी पत्नी को भी नहीं बताना, राजेश जरूरत मंद था और साथ ही साथ वो अनकहा रिश्ता भी उसे अपनी ओर खींच रहा था .... उसने अपना वादा निभाया। कृति को हमेशा खुश रखा और कृति भी माँ की छत्र छाया में बड़ी समझदारी से अपनी शादी शुदा जिंदगी को निभाने लगी और ख़ुशी से जब राजेश के जीवन में दूसरी पत्नी आई उसका तहे दिल से स्वागत किया। उसका दिल इतना बड़ा था कि उसने राजेश और दूसरी पत्नी को कभी शिकायत का मौका न दिया जिसका नतीजा यह निकला कि वे दोनों भी उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा मानते थे न कि भार …. आज जब दूसरी पत्नी से बच्चा हुआ, सबसे पहले लाकर उसकी गोद में दिया,और कहा ये तुम्हारी बड़ी माँ है सुन कर लगा ..
अपूर्णता से पूर्णता का लम्बा सफ़र मानो एक पल में पूर्ण हो गया!
तभी दरवाजे पर हलचल हुई,जिससे कृति वर्तमान के धरातल पर लौट आई,
देखा, बधाइयां बांटते हुए,तालियां बजाते हुए कुछ लोग चले आ रहे हैं, उन्हें देख कर डर गई, बचपन से माँ से उनके बारे में सुनती आई थी। अंदर का डर हावी हो गया, घर के भीतर की ओर भागी, राजेश ने यह सब देखा, बड़े अपनेपन से कृति का हाथ पकड़ा और उसे बाहर लेकर आया, अपनी ख़ुशी में शामिल किया और ढाढंस बंधाई कि हमारे होते कुछ नहीं होगा। किसी की हिम्मत नहीं जो तुम्हे हाथ भी लगाये, फिर पैसे दिए और कहा बच्चे पर से वार कर उन्हें दे दो, यह देख कर शान्ति और राज की आँखे भर आई, आज उनकी भगवान् से जो शिकायत थी, शायद थोड़ी कम हुई। आज वर्षों बाद उनके चेहरे पर एक अजीब पर शांत, निश्चिंत, सन्तुष्टि का मिला जुला भाव था।

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