Hindi story
कलयुग की सीता
एक बनता हुये शहर में आधुनिकता का प्रवेश हो रहा था,पहले ये शहर एक छोटा सा क़स्बा हुआ करता था पर आस-पास के गाँव वालों के लिए तब भी शहर ही था.
नयी-नयी बिल्डिंग्स बन रही थी,नयी-नयी कॉलोनीज में नये लोग रैनबसेरा बना रहे थे।
वक़्त बीतने के साथ पहले आये लोग पुराने हो गये और जो लोग बाद में आये वो नए हो गये।
ऐसे ही एक दिन उसी कॉलोनी में एक नए परिवार का आना हुआ.
कुल तीन लोग थे,एक अधेड़ महिला,एक बुजुर्ग पुरुष और एक जवान लड़की।
सबकी निगाहें उसी परिवार पर जमी रहती थी क्योंकि उन्हें आये हुए एक महीने से ऊपर होने चला था पर अभी तक वो किसी से ज्यादा घुलते मिलते नही नही थे।
लड़की सुबह जल्दी निकलती तो देर रात ही घर आती थी,महिला कभी- कभी अपनी बालकनी में कुछ करते हुए झलक दिखाकर गायब हो जाती थी.
सभी कॉलोनी वालो में सुगबुगाहट मची हुई थी,कौन है ये लोग?कहाँ से आये है? क्या करते है? हम सबसे ज्यादा मिलते क्यों नही हैं? क्योकि अपने आप में मस्त रहते हैं?
ऐसे बहुत सी बातें होती थी,एक बात का शायद उस परिवार को छोड़कर सबको पता था।
दिन निकलते गये और उस परिवार को लेकर सभी लोगो की उत्सुकता दिन प्रतिदिन बढती चली गई.
लड़की का देर रात घर लौटना कॉलोनी की सभी औरतो के साथ अब मर्दो को भी अखरता था,उनके हिसाब से बच्चो पर गलत असर पड़ रहा था.
कुछ दिनों से उस परिवार से मिलने बड़े,अमीर लोग आने लगे थे,सभी अपनी महंगी गाड़ियों में आते थे और कुछ वक़्त गुजारकर वापस चले जाते.वो परिवार अभी भी किसी से मिलता जुलता नही था.कभी- कभी वो महिला बुजुर्ग के साथ बाहर जाती हुए दिखने लगी थी.
सभी कॉलोनी वालो ने अपने अपने हिसाब से अनुमान लगा लिया था कि इस परिवार में जरूर कुछ गड़बड़ हैं, ये लोग हम सभ्य लोगो की कॉलोनी में गलत माहौल बना रहे हैं.
अब तो तरह- तरह की बातें भी होने लगी थीं, इतने बड़े लोग आते हैं,लड़की देर रात घर आती हैं, कभी तो हप्तो नजर नही आती हैं, कहा जाती हैं, क्या करती हैं,जरूर दाल में कुछ काला है।
कॉलोनी के कुछ लोग एक दिन उस परिवार से मिलने उनके घर गये, महिला ने दरवाजा खोला और बड़े ही शालीन तरीके से सबक स्वागत किया.
बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ,सबका परिचय देते हुए महिला ने बताया,ये बुजुर्गवार मेरे पति हैं,और ये मेरी बेटी हैं.
बहुत ही अपनेपन से उस परिवार ने सबकी आवभगत की लेकिन सबके मन में जी शक का कीड़ा घर चूका था वो इतनी आसानी से जाने वाला नही था.लेकिन सभी की राय में वो लोग सभ्य लोग लग रहे थे।
खैर थोड़ा वक़्त बिताकर लोग वापस आ गए,और अपनी रोज की दिनचर्या में व्यस्त हो गए।
बड़े लोगो के साथ अब तो कुछ राजनैतिक लोग भी आने लगे थे उस परिवार से मिलने के लिए,ये देखकर सभी लोग आपस में बात करते थे कि इनसे मिलने इतने बड़े -बडे लोग आते हैं ये लोग इतने अमीर होते तो यहाँ इस कॉलोनी में नही किसी बड़े महल में रहते,वैसे भी अब इनसे साफ साफ बात करनी पड़ेगी.
तभी एक रोज कुछ ऐसा हुआ जिससे कुछ लोग हैरान हुए,और कुछ लोग यही कहते हुए पाये गये की हमें तो पहले से ही शक था।
पूरे कॉलोनी में जाने किसने ये बात फैला दी थी की लड़की जहाँ धंधे वाली औरते रहती हैं वह जाया करती हैं.कॉलोनी के ही किसी ने उसे वह जाते हुए देखा था.
पूरे कॉलोनी में लोग गुस्से में जल उठे,खासतौर से औरतें,
जो परिवार कल तक एक एक नेकदिल और सभ्य लोगो की श्रेणी में आता था वो लोग अब नीच,घटिया,गिरे हुए लोगो की श्रेणी में आ गया.
मोहल्ले की औरतों ने निश्चय किया कि इस औरत और उसकी बेटी को इस कॉलोनी से बाहर निकालकर ही रहेंगे,इससे पहले वो अपने जाल में हमारे पति और बच्चो को फंसा ले,
कॉलोनी में एक मीटिंग बुलाई गई और महिला और उनकी बेटी को खासतौर से बुलाया गया.
सबने अपनी-अपनी तरफ से जी भरके जितना वो बोला सकते थेे बोला,दोनों माँ बेटी बड़ी ही शांति से सबकी बाते सुनती रही।
बेटी थोड़ा असहज हो रही थी तो माँ आँख के ईशारे से उसे चुप रहने को संकेत देती थी.
आरोप प्रत्यारोप का दौर काफी देर तक चलता रहा,बिना उनकी बात सुने सबने उन्हें चरित्रहीन घोषित कर दिया और कॉलोनी छोड़कर जाने का फरमान सुना दिया.
एक कुछ औरतो ने माँ-बेटी दोनों को वेश्या शब्द से भी नवाज दिया.
आखिर में बेटी उठी और बेहद नम्रता पूर्वक अपनी बात रखने की इजाजत मांगी।
सभी के जबाब देने का इंतजार किये बिना उसने बोलना शुरू कर दिया.
मैंने और मेरी माँ से आप लोगो की हर बात सुनी,यहाँ तक ही औरतो ने ही हमें वेश्या की उपाधि भी दी,
मैं उन्ही से पूंछती हू कि वेश्या कौन होती हैं?क्या परिभाषा है वेश्या की?
""वही न जो पैसो के लिए अपना तन किसी भी पुरुष को बेचती हैं,तो फिर तो वेश्या तो वो औरत भी हुई न जो शादी के बाद अपने पति को अपना शरीर कभी मर्जी से ,कभी बिना मर्जी से जीवनभर के लिए सौप देती हैं. बदले में क्या मिलता हैं उसे, पैसे ,गहने,समाज में इज्जत,एक परिवार।
""कुछ खुशकिस्मत औरतो को प्यार और इज्जत,और मनचाही जिंदगी भी मिल जाती हैं. लेकिन ज्यादातर औरते तो बस समाज के नियमो के नाम पर खुद की भावनाओं को ख़त्म करके अपने पतियों को जीवनभर बेचती हैं,बदले में क्या मिलता हैं, पल- पल तिरस्कार,.
जिस पति को अपना तन सौंपती है वही पति कुछ दिन उस शारीर का उपभोग करके जब ऊब जाता हैं तो बाहर जाकर अपनी तन- मन की ऊब मिटने के लिए नए साधन ढूढ़ने लगता हैं.
"'पुरषो की पांचो उंगली में घी होता हैं,घर वाली औरत को सामाजिक दर्जा देकर,सती-सावित्री के आवरण में कैद कर देता हैं,सारी उम्र अपने अनुसार उनका उपयोग और उपभोग करता है,जब घर से जी भर जाता है तो खुद नए तन का उपभोग करने हर जगह मुँह मारता हैं.और बाहर वाली परिस्थितियों की मारी हर औरत को वेश्या का दर्जा देकर उसका उपभोग करता हैं।""
""इस समाज में औरत होने के मायने यही है कि औरत होने के कोई मायने नही हैं,औरत कितनी भी ऊँचाई नाप ले सर्वोच्च पुरुष ही रहेगा.
क्योकि हम औरतों ने भी खुद को उन पैमानों में, कैद कर रखा हैं जो पुरुषो ने बनाये हैं।""
"क्योकि जो घर में हैं वो चरित्रवान और जो बाहर हैं वो चरित्रहीन".हम औरतो की सारी उम्र खुद को सती-सावित्री साबित करते हुए करते निकल जाती हैं.
"सतयुग में माता सीता को अग्निपरीक्षा के बाद भी एक विरक्त जीवन गुजरना पड़ा था.
और कलयुग में आम्रपाली को सिर्फ बेइंतहा खूबसूरती की कीमत नगरवधू( वेश्या) बनकर चुकानी पड़ी थी.
दोष दोनों का ही नही था पर समाज और नियम पुरषो के बनाये हुए थे,"
""माता सीता धरती में समाकर देवी के सामान पूज्नीय हो गई और आम्रपाली एक बौद्ध भिक्षुणी बनकर इतिहास में अमर हो गई.""
बात रही मेरे परिवार को तो ये सच हैं कि–
हाँ,मेरी माँ वेश्या थी.
वो मेरे खातिर,मेरे बाप की खातिर अपना तन बेचती थी ताकि घर चला सके, मुझे पढ़ा- लिखाकर काबिल बना सके.
आज मैं एक कंपनी की सीईओ हूं, जिन गलियों में मैंने अपना बचपन गुजारा हैं वहाँ आज भी जाती हूं,उन औरतो की शिक्षा और विकास लिए कुछ सामाजिक संगठनो के साथ मिलकर उन्हें जागरूक करती हूँ ताकि कोई और औरत वेश्या न कहलाये।
""संयोग की एक बात और हैं, मेरी माँ का नाम 'सीता 'हैं, और उन्होंने मुझे नाम दिया हैं 'आम्रपाली'.""
सबकी आँखे शर्म से झुकी थीं और दोनों माँ बेटी गर्व से सर उठाकर बाहर निकलने लगी.
एक बनता हुये शहर में आधुनिकता का प्रवेश हो रहा था,पहले ये शहर एक छोटा सा क़स्बा हुआ करता था पर आस-पास के गाँव वालों के लिए तब भी शहर ही था.
नयी-नयी बिल्डिंग्स बन रही थी,नयी-नयी कॉलोनीज में नये लोग रैनबसेरा बना रहे थे।
वक़्त बीतने के साथ पहले आये लोग पुराने हो गये और जो लोग बाद में आये वो नए हो गये।
ऐसे ही एक दिन उसी कॉलोनी में एक नए परिवार का आना हुआ.
कुल तीन लोग थे,एक अधेड़ महिला,एक बुजुर्ग पुरुष और एक जवान लड़की।
सबकी निगाहें उसी परिवार पर जमी रहती थी क्योंकि उन्हें आये हुए एक महीने से ऊपर होने चला था पर अभी तक वो किसी से ज्यादा घुलते मिलते नही नही थे।
लड़की सुबह जल्दी निकलती तो देर रात ही घर आती थी,महिला कभी- कभी अपनी बालकनी में कुछ करते हुए झलक दिखाकर गायब हो जाती थी.
सभी कॉलोनी वालो में सुगबुगाहट मची हुई थी,कौन है ये लोग?कहाँ से आये है? क्या करते है? हम सबसे ज्यादा मिलते क्यों नही हैं? क्योकि अपने आप में मस्त रहते हैं?
ऐसे बहुत सी बातें होती थी,एक बात का शायद उस परिवार को छोड़कर सबको पता था।
दिन निकलते गये और उस परिवार को लेकर सभी लोगो की उत्सुकता दिन प्रतिदिन बढती चली गई.
लड़की का देर रात घर लौटना कॉलोनी की सभी औरतो के साथ अब मर्दो को भी अखरता था,उनके हिसाब से बच्चो पर गलत असर पड़ रहा था.
कुछ दिनों से उस परिवार से मिलने बड़े,अमीर लोग आने लगे थे,सभी अपनी महंगी गाड़ियों में आते थे और कुछ वक़्त गुजारकर वापस चले जाते.वो परिवार अभी भी किसी से मिलता जुलता नही था.कभी- कभी वो महिला बुजुर्ग के साथ बाहर जाती हुए दिखने लगी थी.
सभी कॉलोनी वालो ने अपने अपने हिसाब से अनुमान लगा लिया था कि इस परिवार में जरूर कुछ गड़बड़ हैं, ये लोग हम सभ्य लोगो की कॉलोनी में गलत माहौल बना रहे हैं.
अब तो तरह- तरह की बातें भी होने लगी थीं, इतने बड़े लोग आते हैं,लड़की देर रात घर आती हैं, कभी तो हप्तो नजर नही आती हैं, कहा जाती हैं, क्या करती हैं,जरूर दाल में कुछ काला है।
कॉलोनी के कुछ लोग एक दिन उस परिवार से मिलने उनके घर गये, महिला ने दरवाजा खोला और बड़े ही शालीन तरीके से सबक स्वागत किया.
बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ,सबका परिचय देते हुए महिला ने बताया,ये बुजुर्गवार मेरे पति हैं,और ये मेरी बेटी हैं.
बहुत ही अपनेपन से उस परिवार ने सबकी आवभगत की लेकिन सबके मन में जी शक का कीड़ा घर चूका था वो इतनी आसानी से जाने वाला नही था.लेकिन सभी की राय में वो लोग सभ्य लोग लग रहे थे।
खैर थोड़ा वक़्त बिताकर लोग वापस आ गए,और अपनी रोज की दिनचर्या में व्यस्त हो गए।
बड़े लोगो के साथ अब तो कुछ राजनैतिक लोग भी आने लगे थे उस परिवार से मिलने के लिए,ये देखकर सभी लोग आपस में बात करते थे कि इनसे मिलने इतने बड़े -बडे लोग आते हैं ये लोग इतने अमीर होते तो यहाँ इस कॉलोनी में नही किसी बड़े महल में रहते,वैसे भी अब इनसे साफ साफ बात करनी पड़ेगी.
तभी एक रोज कुछ ऐसा हुआ जिससे कुछ लोग हैरान हुए,और कुछ लोग यही कहते हुए पाये गये की हमें तो पहले से ही शक था।
पूरे कॉलोनी में जाने किसने ये बात फैला दी थी की लड़की जहाँ धंधे वाली औरते रहती हैं वह जाया करती हैं.कॉलोनी के ही किसी ने उसे वह जाते हुए देखा था.
पूरे कॉलोनी में लोग गुस्से में जल उठे,खासतौर से औरतें,
जो परिवार कल तक एक एक नेकदिल और सभ्य लोगो की श्रेणी में आता था वो लोग अब नीच,घटिया,गिरे हुए लोगो की श्रेणी में आ गया.
मोहल्ले की औरतों ने निश्चय किया कि इस औरत और उसकी बेटी को इस कॉलोनी से बाहर निकालकर ही रहेंगे,इससे पहले वो अपने जाल में हमारे पति और बच्चो को फंसा ले,
कॉलोनी में एक मीटिंग बुलाई गई और महिला और उनकी बेटी को खासतौर से बुलाया गया.
सबने अपनी-अपनी तरफ से जी भरके जितना वो बोला सकते थेे बोला,दोनों माँ बेटी बड़ी ही शांति से सबकी बाते सुनती रही।
बेटी थोड़ा असहज हो रही थी तो माँ आँख के ईशारे से उसे चुप रहने को संकेत देती थी.
आरोप प्रत्यारोप का दौर काफी देर तक चलता रहा,बिना उनकी बात सुने सबने उन्हें चरित्रहीन घोषित कर दिया और कॉलोनी छोड़कर जाने का फरमान सुना दिया.
एक कुछ औरतो ने माँ-बेटी दोनों को वेश्या शब्द से भी नवाज दिया.
आखिर में बेटी उठी और बेहद नम्रता पूर्वक अपनी बात रखने की इजाजत मांगी।
सभी के जबाब देने का इंतजार किये बिना उसने बोलना शुरू कर दिया.
मैंने और मेरी माँ से आप लोगो की हर बात सुनी,यहाँ तक ही औरतो ने ही हमें वेश्या की उपाधि भी दी,
मैं उन्ही से पूंछती हू कि वेश्या कौन होती हैं?क्या परिभाषा है वेश्या की?
""वही न जो पैसो के लिए अपना तन किसी भी पुरुष को बेचती हैं,तो फिर तो वेश्या तो वो औरत भी हुई न जो शादी के बाद अपने पति को अपना शरीर कभी मर्जी से ,कभी बिना मर्जी से जीवनभर के लिए सौप देती हैं. बदले में क्या मिलता हैं उसे, पैसे ,गहने,समाज में इज्जत,एक परिवार।
""कुछ खुशकिस्मत औरतो को प्यार और इज्जत,और मनचाही जिंदगी भी मिल जाती हैं. लेकिन ज्यादातर औरते तो बस समाज के नियमो के नाम पर खुद की भावनाओं को ख़त्म करके अपने पतियों को जीवनभर बेचती हैं,बदले में क्या मिलता हैं, पल- पल तिरस्कार,.
जिस पति को अपना तन सौंपती है वही पति कुछ दिन उस शारीर का उपभोग करके जब ऊब जाता हैं तो बाहर जाकर अपनी तन- मन की ऊब मिटने के लिए नए साधन ढूढ़ने लगता हैं.
"'पुरषो की पांचो उंगली में घी होता हैं,घर वाली औरत को सामाजिक दर्जा देकर,सती-सावित्री के आवरण में कैद कर देता हैं,सारी उम्र अपने अनुसार उनका उपयोग और उपभोग करता है,जब घर से जी भर जाता है तो खुद नए तन का उपभोग करने हर जगह मुँह मारता हैं.और बाहर वाली परिस्थितियों की मारी हर औरत को वेश्या का दर्जा देकर उसका उपभोग करता हैं।""
""इस समाज में औरत होने के मायने यही है कि औरत होने के कोई मायने नही हैं,औरत कितनी भी ऊँचाई नाप ले सर्वोच्च पुरुष ही रहेगा.
क्योकि हम औरतों ने भी खुद को उन पैमानों में, कैद कर रखा हैं जो पुरुषो ने बनाये हैं।""
"क्योकि जो घर में हैं वो चरित्रवान और जो बाहर हैं वो चरित्रहीन".हम औरतो की सारी उम्र खुद को सती-सावित्री साबित करते हुए करते निकल जाती हैं.
"सतयुग में माता सीता को अग्निपरीक्षा के बाद भी एक विरक्त जीवन गुजरना पड़ा था.
और कलयुग में आम्रपाली को सिर्फ बेइंतहा खूबसूरती की कीमत नगरवधू( वेश्या) बनकर चुकानी पड़ी थी.
दोष दोनों का ही नही था पर समाज और नियम पुरषो के बनाये हुए थे,"
""माता सीता धरती में समाकर देवी के सामान पूज्नीय हो गई और आम्रपाली एक बौद्ध भिक्षुणी बनकर इतिहास में अमर हो गई.""
बात रही मेरे परिवार को तो ये सच हैं कि–
हाँ,मेरी माँ वेश्या थी.
वो मेरे खातिर,मेरे बाप की खातिर अपना तन बेचती थी ताकि घर चला सके, मुझे पढ़ा- लिखाकर काबिल बना सके.
आज मैं एक कंपनी की सीईओ हूं, जिन गलियों में मैंने अपना बचपन गुजारा हैं वहाँ आज भी जाती हूं,उन औरतो की शिक्षा और विकास लिए कुछ सामाजिक संगठनो के साथ मिलकर उन्हें जागरूक करती हूँ ताकि कोई और औरत वेश्या न कहलाये।
""संयोग की एक बात और हैं, मेरी माँ का नाम 'सीता 'हैं, और उन्होंने मुझे नाम दिया हैं 'आम्रपाली'.""
सबकी आँखे शर्म से झुकी थीं और दोनों माँ बेटी गर्व से सर उठाकर बाहर निकलने लगी.
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